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सुबह पांच बजे से मजदूरी की चक्की में पिसते हाथों ने
थाम लिया रंगो की दुनिया का रोमांच
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यह महज संयोग नहीं था कि ज्यादातर बच्चों ने
कागज़ पर चित्रण किया हाथ का, जो उनके अस्तित्व का
मानो एक पर्याय ही था
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हिन्दु कट्टरपंथी संगठन ऐसे ही बच्चों के हाथ में त्रिशुल
थमाकर नकारात्मक हिंसा के रास्ते पर धकेलते है
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लेकिन उन्हे चाहिए सर्जनात्मक अभिव्यक्ति तथा अपनी
मानवीय गरीमा की पहचान
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बनासकांठा तथा साबरकांठा जिल्लों के बहुत सारे आदिवासी
बहुल गांवों के बच्चे बीटी कोटन की मजदूरी के चपेट में
एक बार आ जाते हैं तो वापस स्कुल नहीं जाते
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इस सर्जनात्मक शिबिर का आयोजन किया था दलित
हक रक्षक मंच तथा आदिवासी सर्वींगी विकास संघ ने
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